Poetic-Verses
कालपृष्ठ पर अंकित / 1
कालपृष्ठ पर अंकित [ खंड - 1]
सामाजिक यथार्थ और मानवीय सरोकारों की कविताएँ
[ डा. महेंद्रभटनागर]
(राग-संवेदन / 17)
रचना-काल: सन् 2003-04
1   श्रेयस
2   संवेदना
3   दो-ध्रुव
4   विपत्तिग्रस्त
5   विजयोत्सव
6   हैरानी
7   समता-स्वप्न
8   अपहर्ता
9   दृष्टि
10   परिवर्तन
11   युगान्तर
12   सुखद
13   बदलो
14   बचाव
15   पहल
16   अद्भुत
17   स्वप्न
(अनुभूत-क्षण / 16)
रचना-काल: सन् 1968-2000
18   संघर्ष
19   अनुभव-सिद्ध
20   सावधान
21   अदम्य
22   सार्थकता
23   प्रतिक्रिया
24   शुभकामनाएँ
25   यथार्थ-आदर्श
26   कारगिल-प्रयाण पर
27   हमारा गौरव
28   निष्फल
29   दीप्र
30   संकल्पित
31   स्वागत : 21वीं शती का
32   अभिनन्दित क्षण
33   विजयोल्लास
(आहत युग / 24)
रचना-काल: सन् 1987-97
34   संग्राम ; और
35   अमानुषिक
36   फ़तहनामा
37   त्रासदी
38   होगा कोई
39   हॉकर से
40   आत्मघात
41   लोग
42   आपात्काल
43   जागते रहना
44   ज़रूरी
45   इतिहास का एक पृष्ठ
46   वसुधैवकुटुम्बकम्
47   भ्रष्टाचार
48   अंत
49   रक्षा
50   तमाशा
51   वोटों की दुष्टनीति  
52   सार्थकता
53   अलम्
54   सम्भव - 1
55   सम्भव - 2
56   विपत्
57   स्वतंत्र
(जीने के लिए / 12)
रचना-काल: सन् 1977-86
58   आतंक के घेरे में
59   धर्मयज्ञ
60   आरज्रू  
61   सन् 1986 ई. में
62   अग्नि-परीक्षा
63   नये इंसानों से
64   दूसरा मन्वन्तर
65   इतिहास-सृष्टाओ!
66 दरिद्रनारायण
67   माहौल
68   विजय-विश्वास
69   मंत्र
(जूझते हुए / 21)
रचना-काल: सन् 1972-76
70   प्रतिरोध
71   पतन
72   विचित्र
73   त्रासदी
74   कुफ्र
75   आह्नान
76   विश्वस्त
77   अनाहत
78   जनवादी
79   एकजुट
80   संक्रमण
81   मज़दूरों का गीत
82   श्रमजित्
83   वर्षान्त पर
84   विसंगति
85   प्रजातंत्र
86   लालसा
87   सर्वहारा का वक्तव्य
88   अभूतपूर्व
89   आश्वास
90   मुक्त-कंठ
(संकल्प / 15)
रचना-काल: सन् 1967-71
91   सहभाव
92   अन्तर्ध्वन्सक
93   अब नहीं
94   मेरा देश
95   नहीं तो
96   हमारे इर्द-गिर्द
97   एक नगर और रात की चीखें
98   अंधकाल
99   आओ जलाएँ
100   समता का गान
101   होली
102   विश्व-श्री
103   जनतंत्र-आस्था
104   गणतंत्र-स्मारक
105   प्रण
(संवर्त / 9)
रचना-काल: सन् 1962-66
106   वर्तमान
107   श्रमजित्
108   संकल्प
109   आश्वस्त
110   विचित्र
111   परिणति
112   प्रतिबद्ध
113   योगदान
114   नवोन्मेष
(संतरण / 13)
रचना-काल: सन् 1956-62
115   दीप जलाओ
116   दीप-माला
117   अभिषेक
118   दीप धरो  
119   अंधकार
120   लक्ष्य
121   आलोक
122   शुभकामनाएँ
123   दीप जलता है
124   नया भारत
125   एशिया
126   माओ और चाऊ के नाम
127   रंग बदलेगा गगन
.
(1) श्रेयस्
.
सृष्टि में वरेण्य
एक-मात्र
स्नेह-प्यार भावना!
मनुष्य की
मनुष्य-लोक मध्य,
सर्व जन-समष्टि मध्य
राग-प्रीति भावना!
.
समस्त जीव-जन्तु मध्य
अशेष हो
मनुष्य की दयालुता!
यही
महान श्रेष्ठतम उपासना!
.
विश्व में
हरेक व्यक्ति
रात-दिन / सतत
यही करे
पवित्र प्रकर्ष साधना!
.
व्यक्ति-व्यक्ति में जगे
यही
सरल-तरल अबोध निष्कपट
एकनिष्ठ चाहना!
.
(2) संवेदना
.
काश, आँसुओं से मुँह धोया होता,
बीज प्रेम का मन में बोया होता,
दुर्भाग्यग्रस्त मानवता के हित में
अपना सुख, अपना धन खोया होता!
.
(3) दो ध्रुव
.
स्पष्ट विभाजित है
  जन-समुदाय -
समर्थ / असहाय।
.
हैं एक ओर -
भ्रष्ट राजनीतिक दल
उनके अनुयायी खल,
सुख-सुविधा-साधन-सम्पन्न
  प्रसन्न।
धन-स्वर्ण से लबालब
आरामतलब / साहब और मुसाहब!
बँगले हैं / चकले हैं,
तलघर हैं / बंकर हैं,
भोग रहे हैं
जीवन की तरह-तरह की नेमत,
  हैरत है, हैरत!
.
दूसरी -
जन हैं
भूखे-प्यासे दुर्बल, अभावग्रस्त ... त्रस्त,
अनपढ़,
दलित असंगठित,
खेतों - गाँवों / बाजा़रों - नगरों में
  श्रमरत,
शोषित / वंचित / शंकित!
.
(4) विपत्ति-ग्रस्त
.
बारिश
थमने का नाम नहीं लेती,
जल में डूबे
गाँवों-क़स्बों को
थोड़ा भी
आराम नहीं देती!
सचमुच,
इस बरस तो क़हर ही
  टूट पड़ा है,
देवा, भौचक खामोश
  खड़ा है!
.
ढह गया घरौंधा
छप्पर-टप्पर,
बस, असबाब पड़ा है
  औंधा!
.
आटा-दाल गया सब बह,
देवा, भूखा रह!
.
इंधन गीला
नहीं जलेगा चूल्हा,
तैर रहा है चैका
  रहा-सहा!
.
घन-घन करते
नभ में वायुयान
मँडराते
गिद्धों जैसे!
शायद,
नेता / मंत्री आये
करने चेहलक़दमी,
  उत्तर-दक्षिण
  पूरब-पश्चिम
छायी
ग़मी-ग़मी!
अफ़सोस
कि बारिश नहीं थमी!
.
(5) विजयोत्सव
.
एरोड्रोम पर
विशेष वायुयान में
पार्टी का
लड़ैता नेता आया है,
.
शताब्दी' से
स्टेशन पर
कांग्रेस का
चहेता नेता आया है,
.
ए-सी एम्बेसेडर' से
सड़क-सड़क,
दल का
जेता नेता आया है,
.
भरने जयकारा,
पुरज़ोर बजाने
सिंगा, डंका, डिंडिम,
  पहुँचा
  हुर्रा-हुर्रा करता
  सैकड़ों का हुजूम!
.
पालतू-फालतू बकरियों का,
शाॅल लपेटे सीधी मूर्खा भेड़ों का,
संडमुसंड जंगली वराहों का,
बुज़दिल भयभीत सियारों का!
.
में-में करता
गुर्रा-गुर्रा हुंकृति करता
करता हुआँ-हुआँ!
.
चिल्लाता -
  लूट-लूट,
  प्रतिपक्षी को ....
  शूट-शूट!
जय का जश्न मनाता
गब्बर' नेता का!
.
(6) हैरानी
.
कितना ख़ुदग़रज़
  हो गया इंसान!
बड़ा ख़ुश है
पाकर तनिक-सा लाभ -
  बेच कर ईमान!
.
चंद सिक्कों के लिए
कर आया
शैतान को मतदान,
  नहीं मालूम
  ख़ुददार' का मतलब
  गट-गट पी रहा अपमान!
.
रिझाने मंत्रियों को
उनके सामने
कठपुतली बना निष्प्राण,
  अजनबी-सा दीखता -
  आदमी की
  खो चुका पहचान!
.
(7) समता-स्वप्न
.
विश्व का इतिहास
साक्षी है -
.
अभावों की
धधकती आग में
  जीवन
  हवन जिनने किया,
अन्याय से लड़ते
व्यवस्था को बदलते
पीढ़ियों
  यौवन
  दहन जिनने किया,
.
वे ही
छले जाते रहे
प्रत्येक युग में,
क्रूर शोषण-चक्र में
अविरत
दले जाते रहे
प्रत्येक युग में!
.
विषमता
और ...
  बढ़ती गयी,
बढ़ता गया
विस्तार अन्तर का!
  हुआ धनवान
  और साधनभूत,
  निर्धन -
  और निर्धन,
  अर्थ गौरव हीन,
हतप्रभ दीन!
.
लेकिन;
विश्व का इतिहास
साक्षी है -
.
परस्पर
साम्यवाही भावना इंसान की
निष्क्रिय नहीं होगी,
न मानेगी पराभव!
.
लक्ष्य तक पहुँचे बिना
होगी नहीं विचलित,
न भटकेगा / हटेगा
एक क्षण
अवरुद्व हो लाचार
समता-राह से मानव!
.
(8) अपहर्ता
.
धूर्त -
सरल दुर्बल को
ठगने
धोखा देने
  बैठे हैं तैयार!
.
धूर्त -
लगाये घात,
छिपे
इर्द-गिर्द
  करने गहरे वार!
.
धूर्त -
फ़रेबी कपटी
  चैकन्ने
करने छीना-झपटी,
लूट-मार
हाथ-सफ़ाई
चतुराई
  या
  सीधे मुष्टि-प्रहार!
.
धूर्त -
हड़पने धन-दौलत
पुरखों की वैध विरासत
हथियाने माल-टाल
कर दूषित बुद्वि-प्रयोग!
.
धृष्ट,
दुःसाहसी,
निडर!
.
बना रहे
छद्म लेख-प्रलेख!
.
चमत्कार!
विचित्र चमत्कार!
.
(9) दृष्टि
.
जीवन के कठिन संघर्ष में
    हारो हुओ!
हर क़दम
दुर्भाग्य के मारो हुओ!
असहाय बन
    रोओ नहीं,
गहरा अँधेरा है,
चेतना खोओ नहीं!
.
पराजय को
विजय की सूचिका समझो,
अँधेरे को
सूरज के उदय की भूमिका समझो!
.
विश्वास का यह बाँध
    फूटे नहीं!
नये युग का सपन यह
    टूटे नहीं!
भावना की डोर यह
    छूटे नहीं!
.
(10) परिवर्तन
.
मौसम
कितना बदल गया!
सब ओर कि दिखता
  नया-नया!
.
सपना -
जो देखा था
  साकार हुआ,
अपने जीवन पर
अपनी क़िस्मत पर
  अपना अधिकार हुआ!
.
समता का
बोया था जो बीज-मंत्र
पनपा, छतनार हुआ!
सामाजिक-आर्थिक
नयी व्यवस्था का आधार बना!
.
शोषित-पीड़ित जन-जन जागा,
नवयुग का छविकार बना!
साम्य-भाव के &
सामाजिक यथार्थ और मानवीय सरोकारों की कविताएँ
[ डा. महेंद्रभटनागर]
(राग-संवेदन / 17)
रचना-काल: सन् 2003-04
1   श्रेयस
2   संवेदना
3   दो-ध्रुव
4   विपत्तिग्रस्त
5   विजयोत्सव
6   हैरानी
7   समता-स्वप्न
8   अपहर्ता
9   दृष्टि
10   परिवर्तन
11   युगान्तर
12   सुखद
13   बदलो
14   बचाव
15   पहल
16   अद्भुत
17   स्वप्न
(अनुभूत-क्षण / 16)
रचना-काल: सन् 1968-2000
18   संघर्ष
19   अनुभव-सिद्ध
20   सावधान
21   अदम्य
22   सार्थकता
23   प्रतिक्रिया
24   शुभकामनाएँ
25   यथार्थ-आदर्श
26   कारगिल-प्रयाण पर
27   हमारा गौरव
28   निष्फल
29   दीप्र
30   संकल्पित
31   स्वागत : 21वीं शती का
32   अभिनन्दित क्षण
33   विजयोल्लास
(आहत युग / 24)
रचना-काल: सन् 1987-97
34   संग्राम ; और
35   अमानुषिक
36   फ़तहनामा
37   त्रासदी
38   होगा कोई
39   हॉकर से
40   आत्मघात
41   लोग
42   आपात्काल
43   जागते रहना
44   ज़रूरी
45   इतिहास का एक पृष्ठ
46   वसुधैवकुटुम्बकम्
47   भ्रष्टाचार
48   अंत
49   रक्षा
50   तमाशा
51   वोटों की दुष्टनीति  
52   सार्थकता
53   अलम्
54   सम्भव - 1
55   सम्भव - 2
56   विपत्
57   स्वतंत्र
(जीने के लिए / 12)
रचना-काल: सन् 1977-86
58   आतंक के घेरे में
59   धर्मयज्ञ
60   आरज्रू  
61   सन् 1986 ई. में
62   अग्नि-परीक्षा
63   नये इंसानों से
64   दूसरा मन्वन्तर
65   इतिहास-सृष्टाओ!
66 दरिद्रनारायण
67   माहौल
68   विजय-विश्वास
69   मंत्र
(जूझते हुए / 21)
रचना-काल: सन् 1972-76
70   प्रतिरोध
71   पतन
72   विचित्र
73   त्रासदी
74   कुफ्र
75   आह्नान
76   विश्वस्त
77   अनाहत
78   जनवादी
79   एकजुट
80   संक्रमण
81   मज़दूरों का गीत
82   श्रमजित्
83   वर्षान्त पर
84   विसंगति
85   प्रजातंत्र
86   लालसा
87   सर्वहारा का वक्तव्य
88   अभूतपूर्व
89   आश्वास
90   मुक्त-कंठ
(संकल्प / 15)
रचना-काल: सन् 1967-71
91   सहभाव
92   अन्तर्ध्वन्सक
93   अब नहीं
94   मेरा देश
95   नहीं तो
96   हमारे इर्द-गिर्द
97   एक नगर और रात की चीखें
98   अंधकाल
99   आओ जलाएँ
100   समता का गान
101   होली
102   विश्व-श्री
103   जनतंत्र-आस्था
104   गणतंत्र-स्मारक
105   प्रण
(संवर्त / 9)
रचना-काल: सन् 1962-66
106   वर्तमान
107   श्रमजित्
108   संकल्प
109   आश्वस्त
110   विचित्र
111   परिणति
112   प्रतिबद्ध
113   योगदान
114   नवोन्मेष
(संतरण / 13)
रचना-काल: सन् 1956-62
115   दीप जलाओ
116   दीप-माला
117   अभिषेक
118   दीप धरो  
119   अंधकार
120   लक्ष्य
121   आलोक
122   शुभकामनाएँ
123   दीप जलता है
124   नया भारत
125   एशिया
126   माओ और चाऊ के नाम
127   रंग बदलेगा गगन
.
(1) श्रेयस्
.
सृष्टि में वरेण्य
एक-मात्र
स्नेह-प्यार भावना!
मनुष्य की
मनुष्य-लोक मध्य,
सर्व जन-समष्टि मध्य
राग-प्रीति भावना!
.
समस्त जीव-जन्तु मध्य
अशेष हो
मनुष्य की दयालुता!
यही
महान श्रेष्ठतम उपासना!
.
विश्व में
हरेक व्यक्ति
रात-दिन / सतत
यही करे
पवित्र प्रकर्ष साधना!
.
व्यक्ति-व्यक्ति में जगे
यही
सरल-तरल अबोध निष्कपट
एकनिष्ठ चाहना!
.
(2) संवेदना
.
काश, आँसुओं से मुँह धोया होता,
बीज प्रेम का मन में बोया होता,
दुर्भाग्यग्रस्त मानवता के हित में
अपना सुख, अपना धन खोया होता!
.
(3) दो ध्रुव
.
स्पष्ट विभाजित है
  जन-समुदाय -
समर्थ / असहाय।
.
हैं एक ओर -
भ्रष्ट राजनीतिक दल
उनके अनुयायी खल,
सुख-सुविधा-साधन-सम्पन्न
  प्रसन्न।
धन-स्वर्ण से लबालब
आरामतलब / साहब और मुसाहब!
बँगले हैं / चकले हैं,
तलघर हैं / बंकर हैं,
भोग रहे हैं
जीवन की तरह-तरह की नेमत,
  हैरत है, हैरत!
.
दूसरी -
जन हैं
भूखे-प्यासे दुर्बल, अभावग्रस्त ... त्रस्त,
अनपढ़,
दलित असंगठित,
खेतों - गाँवों / बाजा़रों - नगरों में
  श्रमरत,
शोषित / वंचित / शंकित!
.
(4) विपत्ति-ग्रस्त
.
बारिश
थमने का नाम नहीं लेती,
जल में डूबे
गाँवों-क़स्बों को
थोड़ा भी
आराम नहीं देती!
सचमुच,
इस बरस तो क़हर ही
  टूट पड़ा है,
देवा, भौचक खामोश
  खड़ा है!
.
ढह गया घरौंधा
छप्पर-टप्पर,
बस, असबाब पड़ा है
  औंधा!
.
आटा-दाल गया सब बह,
देवा, भूखा रह!
.
इंधन गीला
नहीं जलेगा चूल्हा,
तैर रहा है चैका
  रहा-सहा!
.
घन-घन करते
नभ में वायुयान
मँडराते
गिद्धों जैसे!
शायद,
नेता / मंत्री आये
करने चेहलक़दमी,
  उत्तर-दक्षिण
  पूरब-पश्चिम
छायी
ग़मी-ग़मी!
अफ़सोस
कि बारिश नहीं थमी!
.
(5) विजयोत्सव
.
एरोड्रोम पर
विशेष वायुयान में
पार्टी का
लड़ैता नेता आया है,
.
शताब्दी' से
स्टेशन पर
कांग्रेस का
चहेता नेता आया है,
.
ए-सी एम्बेसेडर' से
सड़क-सड़क,
दल का
जेता नेता आया है,
.
भरने जयकारा,
पुरज़ोर बजाने
सिंगा, डंका, डिंडिम,
  पहुँचा
  हुर्रा-हुर्रा करता
  सैकड़ों का हुजूम!
.
पालतू-फालतू बकरियों का,
शाॅल लपेटे सीधी मूर्खा भेड़ों का,
संडमुसंड जंगली वराहों का,
बुज़दिल भयभीत सियारों का!
.
में-में करता
गुर्रा-गुर्रा हुंकृति करता
करता हुआँ-हुआँ!
.
चिल्लाता -
  लूट-लूट,
  प्रतिपक्षी को ....
  शूट-शूट!
जय का जश्न मनाता
गब्बर' नेता का!
.
(6) हैरानी
.
कितना ख़ुदग़रज़
  हो गया इंसान!
बड़ा ख़ुश है
पाकर तनिक-सा लाभ -
  बेच कर ईमान!
.
चंद सिक्कों के लिए
कर आया
शैतान को मतदान,
  नहीं मालूम
  ख़ुददार' का मतलब
  गट-गट पी रहा अपमान!
.
रिझाने मंत्रियों को
उनके सामने
कठपुतली बना निष्प्राण,
  अजनबी-सा दीखता -
  आदमी की
  खो चुका पहचान!
.
(7) समता-स्वप्न
.
विश्व का इतिहास
साक्षी है -
.
अभावों की
धधकती आग में
  जीवन
  हवन जिनने किया,
अन्याय से लड़ते
व्यवस्था को बदलते
पीढ़ियों
  यौवन
  दहन जिनने किया,
.
वे ही
छले जाते रहे
प्रत्येक युग में,
क्रूर शोषण-चक्र में
अविरत
दले जाते रहे
प्रत्येक युग में!
.
विषमता
और ...
  बढ़ती गयी,
बढ़ता गया
विस्तार अन्तर का!
  हुआ धनवान
  और साधनभूत,
  निर्धन -
  और निर्धन,
  अर्थ गौरव हीन,
हतप्रभ दीन!
.
लेकिन;
विश्व का इतिहास
साक्षी है -
.
परस्पर
साम्यवाही भावना इंसान की
निष्क्रिय नहीं होगी,
न मानेगी पराभव!
.
लक्ष्य तक पहुँचे बिना
होगी नहीं विचलित,
न भटकेगा / हटेगा
एक क्षण
अवरुद्व हो लाचार
समता-राह से मानव!
.
(8) अपहर्ता
.
धूर्त -
सरल दुर्बल को
ठगने
धोखा देने
  बैठे हैं तैयार!
.
धूर्त -
लगाये घात,
छिपे
इर्द-गिर्द
  करने गहरे वार!
.
धूर्त -
फ़रेबी कपटी
  चैकन्ने
करने छीना-झपटी,
लूट-मार
हाथ-सफ़ाई
चतुराई
  या
  सीधे मुष्टि-प्रहार!
.
धूर्त -
हड़पने धन-दौलत
पुरखों की वैध विरासत
हथियाने माल-टाल
कर दूषित बुद्वि-प्रयोग!
.
धृष्ट,
दुःसाहसी,
निडर!
.
बना रहे
छद्म लेख-प्रलेख!
.
चमत्कार!
विचित्र चमत्कार!
.
(9) दृष्टि
.
जीवन के कठिन संघर्ष में
    हारो हुओ!
हर क़दम
दुर्भाग्य के मारो हुओ!
असहाय बन
    रोओ नहीं,
गहरा अँधेरा है,
चेतना खोओ नहीं!
.
पराजय को
विजय की सूचिका समझो,
अँधेरे को
सूरज के उदय की भूमिका समझो!
.
विश्वास का यह बाँध
    फूटे नहीं!
नये युग का सपन यह
    टूटे नहीं!
भावना की डोर यह
    छूटे नहीं!
.
(10) परिवर्तन
.
मौसम
कितना बदल गया!
सब ओर कि दिखता
  नया-नया!
.
सपना -
जो देखा था
  साकार हुआ,
अपने जीवन पर
अपनी क़िस्मत पर
  अपना अधिकार हुआ!
.
समता का
बोया था जो बीज-मंत्र
पनपा, छतनार हुआ!
सामाजिक-आर्थिक
नयी व्यवस्था का आधार बना!
.
शोषित-पीड़ित जन-जन जागा,
नवयुग का छविकार बना!
साम्य-भाव के &
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