geetgazal

रंजो अलम से मुझको अदावत सी

रंजो अलम से मुझको अदावत सी हो गई

खुशियों से मानो जैसे बगावत सी हो गई ।

जबसे वो शहर छोड़ कर परदेश जा बसे

तन्हाइयों में रहने की आदत सी हो गई ।



Comment On This Poem --- Vote for this poem
रंजो अलम से मुझको अदावत सी

39,292 Poems Read

Sponsors