कितने प्रश्न उछाल रहीं थीं पल &
कितने प्रश्न उछाल रहीं थीं पल पल वो अखबारी आंखें ....
मन की सारी बातें कह गईं आंखों से मतवारी आंखें ।
जाते जाते आखिर बह गईं कितनी प्यारी प्यारी आंखें ।
मत जाओ ना आज रुको ना इतना अपनापन उनमें
कितने प्रश्न उछाल रहीं थीं पल पल वो अखबारी आंखें ।
आंखों ने आंखों आंखों में बात मान ली जब आंखों की
लाज से दोहरी सुर्ख हो गईं झुकी झुकी कजरारी आंखें ।
लिखते हैं तो लिखते हैं सच लिखना कोई गुनाह नहीं
इसी बात पर खफा हो गईं हैं हमसे दरबारी आंखे ।
भीड़ भरी दुनियां में यूं ही कोई अकेला क्यों होता है
जाने किसको ढूंढ रहीं थीं वो पगली कजरारी आंखें ।
जगदीश तपिश
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